एसजीआरआर पीजी कॉलेज के प्राचार्य के खिलाफ फर्जी डिग्री मामले में मुकदमा दर्ज

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देहरादून। एसजीआरआर पीजी कॉजेल देहरादून के प्राचार्य के खिलाफ फर्जी डिग्री मामले में पटेलनगर थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है। देहरादून निवासी डा. एसके शर्मा ने वीए बौड़ाई के खिलाफ यह केस दर्ज कराया है। प्रार्थी ने अपनी तहरीर में आरोप लगाया है कि बौड़ाई ने अपने शैक्षिक प्रमाण पत्रों में धोखाधड़ी से कॉलेज प्रबंधन के साथ मिली भगत कर प्राचार्य पद पर नियुक्ति प्राप्त की और। राजकोष को क्षति पहुंचाई। प्रार्थी शिकायतकर्ता ने बताया कि वह एसजीआरआरपीजी कॉलेज में 01 जुलाई 2000 से पढ़ा रहा था।इसी दौरान प्रार्थी को ज्ञात हुआ कि वीए बौड़ाई तथा कथित प्राचार्य ने धोखाधड़ी कर प्राचार्य पद पर फर्जी दस्तावेजों की मदद से नौकरी प्राप्त की है।

प्रार्थी ने तहरीर में ये भी कहा है। उसके पास सारे साक्ष्य हैं। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि बौड़ाई ने अपने आवेदन के साथ जो रिज्यूम लगाया है। उसमें उनके शैक्षिक दस्तावेजों के बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं लिखा है। संलग्न प्रमाण पत्र व कॉलेज प्रबंधन द्वारा तैयार किए गए सिनोपसिस से उनके दस्तावेज मेल नहीं खाते हैं। कॉलेज की वेबसाइट में अपलोड किए गए बायोडाटा में लिखा है कि बौड़ाई ने हाईस्कूल की परीक्षा राजस्थान विवि से 1974 में द्धितीय श्रेणी से उत्तीर्ण की। जबकि आवेदन पत्र के साथ लगे संलग्नक सिद्ध करते हैं कि उन्होंने हाईस्कूल की परीक्षा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान से 1972 में पूरक परीक्षा के रूप में उत्तीर्ण की थी।रिज्यूम के साथ जो अंक तालिका संलग्न की गई है और अंक (53.41 प्रतिशत) दर्शाये गए हैं। वह 11वीं की है न की हाईस्कूल की। हाईस्कूल , माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान से किया गया है। जिसका रोल न. 1715 है। जबकि राजस्थान विवि की प्री यूनिवर्सिटी 11 वीं का रोल न. 412 है। जिसके अंक 53.41 है। और इसे एसजीआरआर पीजी कॉलेज प्रबंधन द्वारा हाईस्कूल में दर्शाया गया है।
प्रार्थी का आरोप है कि एसजीआरआर पीजी कॉलेज द्वारा बनाए गए सिनोपसिस में बौड़ाई को बारहवीं परीक्षा भी राजस्थान विवि से 59.67 प्रतिशत अंकों के साथ 1976 में पास होना दिखाया गया है। जबकि न तो रिज्यूज और न ही कॉलेज की वेबसाइट से प्राप्त बायोडाटा इसकी पुष्टि करता है। सिनोपसिस में जो अंक दर्शाये गए हैं वो वास्तव में बीए प्रथम वर्ष के हैं। फिर भी पीजी कॉलेज के सर्वोच्च पद पर उन्हें नियुक्ति दे दी गयी है। जबकि वह पीएचडी धारक भी नहीं हैं। शिकायतकर्ता का कहना है कि बौड़ाई ने रिज्यूम में विजिटिंग फैकल्टी के रूप में एफआरआई देहरादून में शिक्षण कार्य करना दिखाया है। जबकि निदेशक उच्चशिक्षा हल्द्वानी से प्राप्त की गयी सूचना के अनुसार वो या अन्य कोई भी कार्मिक नियमित सेवा में रहते अन्यन्त्र कार्य नहीं कर सकता। उन्होंने अन्यन्त्र सेवा की और अवैधानिक लाभ उठाया। रिज्यूम में पब्लिश वर्क दिखाने में भी खूब धोखाधड़ी की गई है। एक ही पेपर को बार-बार दिखाया गया है।शिकायर्ता ने अपनी तहरीर में कहा है कि वीए बौड़ाई की अनेक शिकायतें मिलने के शासन ने निदेशक उच्चशिक्षा उत्तराखंड के माध्यम से जांच कराई। जिसमें यह निष्कर्ष निकला कि प्राचार्य की नियुक्ति गलत की गई है।

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