छट को झट और इगास को हट? कांग्रेश से लेकर बीजेपी की सरकार तक खट पट। देहरादून से नही दिल्ली से निकला मार्ग।

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इगास

  • उत्तराखण्ड की लुप्त होती दीपावली ।

राज्य में पिछली कांग्रेश सरकार के मुखिया हरीश रावत पर भी पुर्वांचल समाज के बीच प्रमुखता से मनाया जाने वाला छट का त्योहार चर्चा का विषय बना रहा। छट के त्योहाए पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किये जाने को लेकर तब भी खूब बबाल मचा था इस बार दूसरी सरकार भी उसी तर्ज पर चली तो सोसल मीडिया से लेकर राजनैतिक दलों में यहाँ तक कि घर के अंदर से भी इगास पर अवकाश घोषित करने की मांग उठी -फिर सोसल मीडिया पर ही अवकाश घोषित करने के फर्जी आदेश की भी खूब चर्चा रही।

राज्य सरकार इस पर कोई निर्णय ले या न ले किन्तु केंद्र सरकार में उत्तराखंड की पैरवी कर रहे बीजेपी नेता ने इगास को खूब चर्चित कर दिया है। खुद बलूनी बीमारी के चलते इगास मनाने अपने गाँव भले ही नही पहुँच पा रहे हो किन्तु देश की राजधानी दिल्ली से बड़ी संख्या में लोग बलूनी के गाँव इगास मनाने पहुँच रहे है। ऐसे में इगास का रास्ता प्रदेश की राजधानी देहरादून की बजाय देश की राजधानी दिल्ली से निकले तो इसके राजनैतिक मायने निकाले जा सकते है।

हरीश असवाल ब्युरो चीफ मेरु रैबार नई दिल्ली।

शायद ही किसी गैर उत्तराखण्डी ने इगास के बारे में सुना होगा, दरअसल आजकल के पहाडी बच्चों को भी इगास का पता नहीं है कि इगास नाम का कोई त्यौहार भी है, ।
दरअसल पहाडीयों की असली दीपावली इगास ही है, जो दीपोत्सव के ठीक ग्यारह दिन बाद मनाई जाती है, दीपोत्सव को इतनी देर में मनाने के दो कारण हैं पहला और मुख्य कारण ये कि – भगवान श्रीराम के अयोध्या वापस आने की खबर सूदूर पहाडी निवासीयों को ग्यारह दिन बाद मिली, और उन्होंने उस दिन को ही दीपोत्सव के रूप में हर्षोल्लास से मनाने का निश्चय किया, बाद में छोटी दीपावली से लेकर गोवर्धन पूजा तक सबको मनाया लेकिन ग्यारह दिन बाद की उस दीवाली को नहीं छोडा, ।
पहाडों में दीपावली को लोग दीये जलाते हैं, गौ पूजन करते हैं, अपने ईष्ट और कुलदेवी कुलदेवता की पूजा करते हैं, नयी उडद की दाल के पकौड़े बनाते हैं और गहत की दाल के स्वांले ( दाल से भरी पुडी़) , दीपावली और इगास की शाम को सूर्यास्त होते ही औजी हर घर के द्वार पर ढोल दमाऊ के साथ बडई ( एक तरह की ढोल विधा) बजाते हैं फिर लोग पूजा शुरू करते हैं, पूजा समाप्ति के बाद सब लोग ढोल दमाऊ के साथ कुलदेवी या देवता के मंदिर जाते हैं वहां पर मंडाण ( पहाडी नृत्य) नाचते हैं, चीड़ की राल और बेल से बने भैला ( एक तरह की मशाल ) खेलते हैं, रात के बारह बजते ही सब घरों इकट्ठा किया सतनाजा ( सात अनाज) गांव की चारो दिशा की सीमाओं पर रखते हैं इस सीमा को दिशाबंधनी कहा जाता है इससे बाहर लोग अपना घर नही बनाते। ये सतनाजा मां काली को भेंट होता है।
इगास मनाने का दूसरा कारण है गढवाल नरेश महिपति शाह के सेनापति वीर माधोसिंह भन्डारी गढवाल तिब्बत युद्ध में गढवाल की सेना का नेतृत्व कर रहे थे, गढवाल सेना युद्ध जीत चुकी थी लेकिन माधोसिंह भन्डारी सेना की एक छोटी टुकडी के साथ मुख्य सेना से अलग होकर भटक गये सबने उन्हें वीरगति को प्राप्त मान लिया लेकिन वो जब वापस आये तो सबने उनका स्वागत बडे जोरशोर से किया ये दिन दीपोत्सव के ग्यारह दिन बाद का दिन इसलिए इस दिन को भी दीपोत्सव जैसा मनाया गया, उस युद्ध में माधोसिंह भन्डारी गढवाल – तिब्बत की सीमा तय कर चुके थे जो वर्तमान में भारत- तिब्बत सीमा है .

भारत के बहुत से उत्सव लुप्त हो चुके हैं, बहुत से उत्सव तेजी से पूरे भारत में फैल रहे हैं, जैसे महाराष्ट्र का गणेशोत्सव, बंगाल की दुर्गा पूजा, पूर्वांचल की छठ पूजा, पंजाब का करवाचौथ गुजरात का नवरात्रि में मनाया जाना वाल गरबा डांडिया, ।
लेकिन पहाडी इगास लुप्त होने वाले त्यौहारों की श्रेणी में है, इसका मुख्य कारण बढता बाजारवाद, क्षेत्रिय लोगों की उदासीनता और पलायन है, ।
मुझे उम्मीद है उत्तराखण्ड की राज्य सरकार जिस तरह छठपूजा को राज्य का मुख्य त्यौहार का दर्जा देकर सरकारी अवकाश की घोषणा कर रही है वैसे ही इस पौराणिक त्यौहार को भी राज्य का मुख्य त्यौहार दर्जा देगी।
आप सभी को आने वाली इगास की शुभकामनाओं के साथ ..,

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