शुक्रिया अगोड़ा, भाइयों के बीच खाई को भरने का ऐसे निकाला फार्मूला, हार गया कोरो ना जीत गई भाई बंधी

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सिस्टम को दिखाया आईना ।

https://youtu.be/vL4qq2Yuj5E

देश के अलग-अलग कोनों में अपने पहाड़ की समृद्ध संस्कृति के साथ गौरव का अनुभव कर जी रहे प्रवासी उत्तराखं डियो को कोरोना महामारी के दौरान पहाड़ों में वापसी के समय अपने ही लोगों से जो व्यवहार देखने को मिला उस पीड़ा के घाव भरने की दवा भी इन्हीं घाव से तलास करतें हुए प्रदेश के कुछ युवाओं ने तलास कर अपने संबंधों को दागदार होने से बचा लिया है।

उत्तरकाशी जिले के अगोड़ा  ग्राम प्रधान ने ग्रामीणों के सहयोग से पूर्ण महामारी से लड़ने के लिए की गई क्वॉरेंटाइन व्यवस्था  पर सरकार के सामने गिड़गिड़ाने की बजाय   अपनी एक नई व्यवस्था को जन्म देकर सिस्टम को आईना दिखाया है ।आधी अधूरी तैयारी के साथ ग्राम प्रधानों के जिम्मे  छोड़ें प्रवासी उत्तराखंड यों को वापसी के दौरान खट्टे मीठे अनुभवों से दो चार होना पड़ रहा है। एक तो रहने की दिक्कत दूसरी कोरो नंको लेकर  लोगों की बदली भी भावनाएं उन्हें परेशान कर रही है किंतु इससे इतर एक दूसरी तस्वीर भी उत्तरकाशी जिले के से आ रही है जहां पूरी व्यवस्था के साथ प्रवासियों के स्वागत के लिए लोग  खड़े दिखाई दे रहे हैं।

गिरीश गैरोला

बताते चलें कि अगोड़ा गांव संगम चट्टी इलाके में 6 किलोमीटर पैदल पहाड़ी दूरी पर बसा हुआ है । ग्राम प्रधान मुकेश सिंह पवार ने बताया अगोड़ा गांव के कुल 28 लोग लौक डाउन के चलते बाहरी प्रदेशों में फंसे हुए हैं जिनमें से केवल 4 लोग ही अभी गांव वापस  लौटे है। इन 4 लोगों को जूनियर हाई स्कूल अगोड़ा में क्वॉरेंटाइन कराया गया है , इन्हें 6 दिन हो चुके हैं बाकी के 24 लोगों की  भी धीरे-धीरे वापसी होने लगी है ऐसे में अगर सभी को एक साथ रखा गया क्वॉरेंटाइन का मतलब नहीं निकलता है , लिहाजा जूनियर हाई स्कूल के सीमित संसाधनों को देखते हुए ग्रामीणों के सहयोग से ग्राम प्रधान मुकेश सिंह पवार ने अपनी जिंदगी के अनुभवों से सीख कर एक नया मॉडल प्रस्तुत किया है ।

ग्राम प्रधान मुकेश पंवार ने बताया महामारी के चलते तमाम पर्यटन  और ट्रैकिंग से जुड़ी गतिविधियां ठप पड़ी हुई हैं ।  प्रधान सहित ज्यादातर लोग ट्रैकिंग व्यवसाय से जुड़े है,   बाहर से आने वाले प्रवासियों के रहने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग के साथ गांव के एक तरफ टेंट लगा दिए गए हैं , इतना ही नहीं लौक डाउन के चलते छुट्टी में गांव आए आर्मी के जवान महादेव सिंह पवार छुट्टी के दिनों में भी इन क्वॉरेंटाइन हुए लोगों के बीच सख्त ड्यूटी दे रहे हैं । उन्होंने बताया कि गांव में सबसे ज्यादा एक्टिविटी सुबह 7:00 बजे से लेकर 10:00 बजे तक होती है और दूसरी जब गांव के लोग अपने खेत और जंगलों से वापस लौटते हैं उस वक्त शाम 4:00 से 7:00 के बीच होती है।  इसी बात को ध्यान में रखते हुए गांव के फौजी महादेव पवार 3 घंटे सुबह और 3 घंटे से साम के समय  इस क्वॉरेंटाइन सेंटर में कड़ी ड्यूटी दे रहे हैं ताकि क्वॉरेंटाइन हुए लोग सोशल डिस्टेंस का पालन कर सकें और बाहर से कोई भी ग्रामीण इस दौरान उनसे मुलाकात न कर सके।

गांव को लौटने वाले ये वही प्रवासी उत्तराखंडी हैं जो चुनाव में ग्राम प्रधान के गणित को बदलने की क्षमता रखते हैं, इन्हे  चुनाव के दौरान सम्मान के साथ बुलाया जाता है , किंतु आज बदली परिस्थितियों में न सिर्फ गांव में उन्हें दोयम दर्जे से देखा जा रहा है बल्कि जब विपत्ति के समय जब उन्हें गांव और ग्रामीणों के सहयोग  की सख्त जरूरत थी उस वक्त  कुछ  गावो में उन्हें हिकारत की नजरों से देखा जा रहा है। ग्रामसभाा अगोड़ा

ने साबित कर दिया है कि सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है भी हो सकता है, सभी गांव और सभी ग्रामीण एक से नहीं है

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